________________
[८६
चम्पक सेठ चौपई ] कंद मूल पत्र ते भखै, पंचाग्नि साधै बेऊ रे। दुकर तपस्या करें, रुड़ा रहिणी काल गमेऊ रे ॥ ११ ॥ के० कुटल बुद्ध भवदत्त ते, भवभूति सरल सुभाव रे। बेऊ मरने ते थया, यक्ष देव तप परभाव रे ॥ १२ ॥ के० अन्यायपुर पाटण तिहां, भवदत्ते अवतार द्धि रे। ते यक्ष चवी नैं तिहां थी, वंचनामति सेठ प्रसिद्ध रे ॥१३॥ के० भवभूति पणि तिहां चवी, पाडलीपुर महसेन नाम रे । क्षत्रीकुलमें ऊपनौ, पुण्य प्रकृति अभिराम रे ॥ १४ ॥ के० घरे लखमी सम्पति घणी, तिण सबल थयौ दातार रे। करै पुण्य करतूत यु, सफल थायै अवतार रे॥१५॥ के० धन पामी खरचै नहीं, लोभ ना लीधा जे लोक रे। समयसुदर कहै तीए, पाम्यौ ते सगलू फोकरे ॥१६।। के०
[सर्वगाथा ३४]
दूहा
महासेन हिव एकदा, चाल्यो चतुर सुजाण । तीरथ जात्र कर आपणौ, जन्म करू परमाण ॥ १ ॥ सार द्रव्य साथै लीयौ, करसि धरम नौ काम । अन्यायपुर पाटण गयौ, वंचनामति जिण ठाम ॥२॥ नगरसेठ मूक्यौ घरे, करस्यै कोड़ जतन्न । मुकी द्रव्य नी गांठड़ी, माहे पांच रतन्न ॥३॥ महासेन मूकी गयौ, आणी मन वेसास । सेठ गांठ ऊखेल नै, जोतां पूगी आस ॥ ४ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org