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[समयसुन्दर रासत्रय जीमाडै छै तूं सदा, विष देजे तिण मांहि । पाप उदेग टलै परौ, बीजौ डर नही काहि ॥१०॥ मति तू करे जे मोहनी, पुत्री तणी लिगार। पुत्री परणीजै घणी, ए थकी नहीं आधार ॥११॥मे० बापे बोल कह्या तिके, मा पणि मान्यौ तेह । विष देई हुं मारस्यु, अधम जमाई एह ॥१२||मे० ए आलोच त्रिलोत्तमा, सांभलि आपणे कानि ।। वज्राहत पाछी वली, ए मँडो तोफान ||१३।। मे० चीतव्यो एम त्रिलोत्तमा, जौ कहुं एह प्रकार । तौ पति मारै बाप नै, नहिं तर मरै भरतार ॥१४॥मे० इहां बाघ इहां तौ कूऔ, कहो हिवै कीजै केम | अकल विचारी नै कहुँ, आपण नै प्रियु नै एम ॥१५॥मे० शकुन निमित्त तणै बले, इम दीठौ छै अनिष्ट । तुम्हनै मास बि सीम छै, कोइक मोटौ कष्ट ।।१६।। मे० ते भणी तुम्हे मत जीमज्यो, पाणी म पीज्यो टांक। . तंबोल पिण मत खाइज्यो, इहां छै मोटौ वांक ॥१७॥ मे० मित्र घरे तुम्हे जीमज्यो, भमिज्यो नगर मझार । रात पड़ी पछै आविज्यो, जाज्यो ऊठि सवार |॥१८॥ मे० आपणी अस्त्री नो कह्यो, मानीउ चतुर सुजाण । वामी दुरगा वोलती, पंथी करैय प्रयाण ॥१६॥ मे० चंपक सेठ चिहुं दिस, नगरी भमै निश्चित।। मित्र सुं रहै परवर्यो, लीला केल करत ॥२०।। मे०
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