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चम्पक सेठ चौपई ]
[८३ वृद्धदत्त ते वलि कहै, वनता नै वार वार। मै कह्यौ ते कीधो नहीं, ते कहै कोण प्रकार ॥२१॥ मे० कोतिगदे वलतो कहै, मुझ दोस नहींय लिगार । आवै नहीं घर आपणे, जीमै नहींय किवार ।।२२।। मे० बाहिर रहै बाहिर जिमै, पाणी न पीवै एथ । संनद्ध बद्ध संकित थकौ, दीसै जेथि नै तेथि ॥२३॥ मे० वृद्धदत्त पापी वली, मारण तणौ उपाय । मांडै बीजी वार ते, दया मया नहिं काइ ॥२४॥ मे० वृद्धदत्त करस्यै वली, थिर मारवा नौ थाप। समयसुन्दर कहै देखज्यो, पोते लागै पाप ॥२५॥ मे०
[ सर्व गाथा ३१८ ] ढाल (१३) कहिज्यो पंडित एह हीयाली एहनी। वृद्धदत्त पापी इक दिवस, तेड्या सुभट वेसासी। एकांत आघा तेडी नै, पाप नी वात प्रकाशी रे ॥ १ ॥ चिंतवै परनै ते पड़े घर नै, भाई बंधनै भूडौ रे चि० चिंतवै परनै ते पड़ेधरनै, राजा प्रजा नै रूड़ो रे ॥२॥चि० सौ सौ सोनईया हुं देस्यु, प्रत्येक थयै कामै रे। चंपक सेठ ने मारी नांखज्यो, लाग देखो तिण ठामै रे ॥३॥ चि० सुभटे वात सही कर मानी, लोभ ते किसं न थाई रे। रात दिवस रहै बल छल जोता, पिण न लहै घात काई रे ॥४॥ चंपक सेठे चाकर राख्या, हथियार सखरा हाथै रे । तनु छाया जिम टलै न पास, सदा रहै ते साथै रे ॥५॥ चिं.
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