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चम्पक सेठ चौपई ]
ढाल (१२) - गिरधर आवैलौ एहनी
जानीए जाय जणावीयौ, मात नै ऊगते सूर । चम्पक तौ चम्पापुरी, परण्यो पुण्य मेरी मईया देहि वधाई मोहि ।
जे मन माने हो तोहि, मुझ मन हरषित होइ । मे० आंकणी सासू सुसरे राखीयौ, नवल जमाई नेह ।
मन बंछित सुख भोगवे, त्रिलोत्तमा सु तेह | मे० ॥ २ ॥ चम्पानगरी में भमै, चम्पक चतुर सुजाण । नरनारी मोही रह्या, ऐ ऐ पुण्य प्रमाण | मे० || ३ || बीजी भूमि त्रिलोत्तमा, आपण प्रिय नै संग । सीयाले सूती हुती, राति समय रली रंग ||४|| मे० नीची ऊतरती थकी, किणही आपण काम । बीजी भूमे आवतां, सबद सुण्यौ तिण ठांम ॥ ५ ॥ मे० वृद्धदत्त करै बीजो को सुणतौ नथी, आधी लेख लिख्यौ जूढ़ी परे, जूदी दोष अम्हारा कर्म नौ घाल्यो जाति पांति नहीं एहनी, किसौ घर मांहे आघौ लियो, शत्रु सुं
वारता, बईयर सुं बहु वार |
राति
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मझार
परे थई
देवे
जमाई
किसो
पडूर ॥ १ ॥
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इण ठाम ।
आगे जातौ ए हुस्यै, इहां रहतौ आपणी लखमी नौ घणी, तेह सुं केहो काम || ||
बात ।
घात ||७|| मे
एह । सनेह ||८|| मे०
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