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[ समयसुन्दर रासत्रय
भीडयौजी ||२७|| चं०
पहुतौ जी । अलहतौजी ॥२८॥ चं०
- अम्हारी मांडवी मांहि सहु माम पाड़ीजी । एह अम्हारौ परमशत्रु, लाज गमाड़ी जी ||२४|| चं० कागल यांची ने एहने मार, कूयै नांखेज्यो जी । दया मया लाल ने पाल को, मति सांकेज्यो जी ॥२५॥ चं० काम कीयां पछे माणस मूंक, देज्यो वधाई जी । भलौ करतौ साधदत्त, मूकज्यो भाई जी ॥२६॥ चं० एह समाचार कागल मांहि, लिखने बीड्योजी । लोभने बाह्य चंपक सेठ, हाथ में चंपक सेठ चाल्यो तुरत, चंपा वृद्धदत्त त गयो गेह, भेद तिण अवसर कौतिगदे आप, घर धणीयाणीजी । कहि कण गई, साधदत्त, गयौ उग्राहणी जी ॥ २६ ॥ चं० घर मांहे दीसे नही कोय, मांटी बइअर जी । त्रिलोत्तमा एकली आवास, नहि काई सहीयरजी ||३०|| चं० क्रीडा करती दीठी सेठ, फूल दड़ा सुं जी । चंपक गयौ चाली नै मांहि चित्त रूड़ा संजी ||३१|| चं० भवतव्यता वस लेख उखेलि, कुमरी वांच्योजी । मारण थी तौ तेहनौ मन्न, पाछौ खांच्यौ जी ||३२|| चं० तिलोत्तमा ते लेइ लेख, राख्यौ पासै जी । आगति स्वागत कीधी आप, एहवुं भासैजी ||३३|| चं० घोड़वहिलीया सामी साल, बांधी बैसोजी । करस्यां काम तुम्हारु सर्व, जे तुम्हे कहिसो जी ||३४|| चं०
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