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चम्पक सेठ चौपई ]
[७६ कुमरी विमास्यौ एहवौ काम, स्युं कर्टुंबापै जी। मँडै कामै हा हा एह, भस्यो पिंड पापै जी ॥३॥ चं० एतौ दीसै देवकुमार, रूपै रूड़ौजी। आंबा डाले बैठौ सोहै, जेहवो सूडौजी ॥३६॥ चं० भाग्य विशेष ए भरतार, माहरे थायै जी। सफल करू तौ यौवन रूप, लहरे जायजी ॥३७॥ चं० एम विमासी बाप नै अक्षरे, लिख्यौ लेख बीजोजी। लिखने दीधौ मां नै, सहु को पतीजै जी ॥३८॥ चं० त्रिलोत्तमा देज्यो चंपक नै, सांझिनी वेलाजी। विलम्ब म करजो एह लिगार, सहु कर भेला जी ॥३६ ।। चं० साधदत्त पणि आयौ सांझ, व्यालू कीधौ जी। कौतकदे देउर नै हाथ, कागल दीधौ जी ॥४०॥ चं० . साधदत्त पणि ऊचै साद, वाच्यौ कागल जी। सगा सणीजा भाई बंध, सहु को आगल जी ॥४१॥ चं० वेला थोड़ी तो पणि लोक, मेल्या माझाजी। पाणिग्रहण कराव्या बेगि, पूरा आझाजी ॥४२॥ चं० वृद्धदत्त नी जड़ी भखार, मोकली कीधी जी। याचक लोक ने लाखे ग्यान, लिखमी दीधी जी ॥४३।। चं० वृद्धदत्त ने घरे प्रभात, आवै, वधामणी जी। उच्छव महुच्छव गीत नै गान, गायै सुहामणा जी ॥४४॥ चं० इण अवसर हिवै वृद्धदत्त, वाटड़ी जोवै जी। को आव्यौ कहै मास्यौ तेह, तो भलं होवै जी ॥४शा चं०
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