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________________ चम्पक सेठ चौपई [ ७७. केही चिन्ता वली उपाय, बीजौ करस्यांजी। जिम तिम करी हुँतौ एहनौ, जीवत हरस्यांजी ॥१३॥ चं० आगै पण मैं मारी माय, हत्या लागी जी। ए मारू तो थाऊं पूर्ण, पाप विभागी जी ॥१४॥ चं० कादम ऊपर कादम लेप लागौ बहुपर जी। मैलै पहरण मैलौ होइ, ओढण उपरि जी ॥१५॥ चं० मारण नो वल मांड्यौ उपाय, लोभ दिखाड़ीजी।। साह रहौ तुम्हे अम्ह पास, साथ नै छाडी जी ॥१६॥ चं०. आप करस्यां विणज व्यापार, द्रव्य उपासांजी। थोड़ा दिवसां मांहि आपे, महर्द्धिक थास्यांजी ॥१॥ चं० चंपानगरी मांहि मजीठ, लाभ सुंहगीजी। उज्जेणी मांहि बिमणे मोल, छै अति मुंहगीजी ॥१८॥ चं० चंपानगरी चंपकसेठ, एकला जावो जी। व्यापारी बीजानै मत्त, कानें सुणावो जी ॥१६॥ चं० सांभलस्यै जो सगला जाइ, मजीठ लेस्यजी। मंजीठ मुंहगी कर आपांन, आणे देस्यजी ॥२०॥ चं० साधदत्त छै भाई मुझ, चंपा मांहेजी। लेख लिखू छु तेहनै एम, अधिक उछाहै जी ॥२१॥ चं० : मंजीठ प्रमुख मुंहगी वस्तु, लेई देज्यो जी। अरधो अरध स्वाहा लाभ, विहची लेज्यो जी ॥२२॥ चं० एम कह्यौ पणि लिखीयु तेह, सहु सांभलज्योजी। कागल वांची नै ततकाल, मत खलभलज्योजी ॥२३॥ चं० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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