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________________ ७२] [समयसुन्दर रासत्रय इम विचारी कह्यौ एहवौ, मित्र कहुं छु तुझ रे। मन थकी वीसारज्यो मां, वहिला मिलल्यो मुझ रे ॥७॥ मा० त्रिविक्रम कहै सुणो वीनति, तुम्हे कीधो प्रयाण रे। अम्हारु ते छै तुम्हारु, प्रीति नो एह बंधाण रे ॥८॥ मा० ऊंट बलद नै वहिल घोड़ा, राछ प्रीछ प्रधान रे। जो जोइये ते साथ ल्यो तुम्हें, सेवक पणि सावधान रे ॥६॥ मा० वृद्धदत्त कहै अम्हारु, किण सु नहीं है काम रे। जे जोइयै ते सर्व थोक छ, वलि तुम्हारौ नाम रे ॥१०॥ मा० बोल मानण भणी कहां छां, मारग में न सेरई रे। पुष्पश्री दासीय साथि द्यौ, भोजन भगत करेइ रे ।।११।। मा० मारग मांहे सोहिला थावां, पहुंतां पछी ततकाल रे। 'पाछी पहुती अम्हे करस्यां, संग्रहज्यो संभाल रे ।। १२ । मा० खिण इक विरहों खमें नहीं, ए पाखै न सरेइ रे । तुम्हे कह्यौ मूकी तो जोइजै, वहिली वलण करेइ रे ।।१३।। मा० वृद्धदत्तै विदा कीधी, चाल्यौ सहु साथ लेइ रे। दासी वहिल विचै बैसारी, दिलासा घणी देइ रे ॥ १४ ।। मा० 'पंथ मांहे पाप धरतो, पहुंतो उज्जेण पाप्त रे। दाण भंजन भणी नीसरयौ, वेगलो वनवास रे ॥ १५॥ मा० साथ सगलौ कीयौ आगे, आप रह्यौ सहु पूठि रे। वहिल पासै टालि वेगली, नीची नांखि अपूठि रे ।। १६ ॥ मा० लाते लाते मार महुकम, अधम कीध अचेत रे। मई जाण में मूंक दीधी, हरषित हुओ तिण हेति रे ॥१७॥ मा० www.jainelibrary.org Jain Educationa International For Personal and Private Use Only
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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