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चम्पक सेठ चौपई ] व्यापारी जाणी वडौ, लेवा आवै लोक। जे जोइ जे तिहां मिलं, पणि ल्यै ते दाम रोक ॥ ३ ॥ त्रिविक्रम पणि तिहां रहै, ते दासी पणि तेथि। पूछि गाछि निश्चय कीयौ, पेट भरथ पणि एथ ॥ ४॥ मांडि प्रीति ते साह सुं, मीठे वचन बुलाइ । आबिज्यो हाट छै आपणौ, ल्यौ जे आवै दाइ॥ ५ ॥ जे जोईयै ते ल्यौ तुम्हे, देज्यो दाम प्रस्ताव । नहीं द्यौ तौ पण नहीं ज छ, प्रीति नौ एह प्रभाव ॥६॥
____ ढाल (९) तुगियागिरि शिखर सोहै, एहनो वृद्धदत्त नै घरे तेड़ी, भोजन भगति करेइ रे । जां रहौ ताइ सीम इहां तुम्हे, जीमज्यो प्रीति धरेइ रे ॥१॥ मारवा नौ उपाय मांड्यौ, पणि मर नहीं कोइ रे । ओल्यु करतां थाइ पैल्यु, करम जौ पाधरौ होइ रे ॥२॥ मा० आभ्रण नै बहु वस्त्र आप्या, सुखड़ी मेवा सार रे । सेठ बहू सुत दास दासी, वसि कीयौ परिवार रे ॥३॥ मा०. वस्तु वाना सर्व वेची, हूओ चालणहार रे। त्रिविक्रम सुं तेड़ी कीयौ, जातां तणो जुहार रे ॥४॥ मा० त्रिविक्रम कहै च्यार मास नी, प्रीति लागी चीत्ति रे। चालतां तुम्हने वचन केहौ, कहुँ हुँ कहो मीत रे ॥२॥ मा०. म जावौ इम तौ अमंगल, जावौ तौ नसनेह रे । रही इम पणि हुवे प्रभुता, वचन नहीं क्यु एह रे ।।६।। मा०
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