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चम्पक सेठ चौपई ] आप साथि नै मिली एहवी, कही वात विमास रे।। शरीर चिंता हेति उतरी, दासी तौ गई नास रे ॥ १८ ॥ मा० मैं तो सगलो ठाम जोई, पण न लाधी एथि रे। इहां थी चालौ ऊतावला है, दाणी आवस्य एथ रे ।।१६।। मा० माणस मंकी खबर दीधी, त्रिविक्रम छै तेथ रे। पुष्पश्री दासी गई नासी, तिहां जोज्यो नही पंथ रे ।२०। मा० कुशले खेमै आपणे घरे, आव्यो हरषित होइ रे। छिन्नु कोड़ि सोनईया अछ, मो विण भोगता न कोइ रे ।।२१।। लखमी पामी न लोभ कीजै, दीधौ आवै साथि रे । समयसुन्दर कहै नहींतर, माखी ज्यु घस हाथ रे॥२२॥ मा०
| सर्वगाथा २१५ ]
दासी तो मुई मारतां, सूणि पूठलौ विरतंत । मरतां पेट थी नीसरो. बालक बहु रूपवंत ॥१॥ इम जायौ रहै जीवतो, जो दया पाली होइ । जसु रक्खे गोसांइयां, मार न सक्क कोइ ॥ २॥
ढाल (१०) राय गंजण समा २ स्वामि स्वयंप्रभु सांभलउ इण अवसर इक डोकरी, वैगी किणही गाम रे । चतुरनर उज्जेणी भणी आवती, ते आवी तिण ठाम रे ॥ चतुरनर ॥१॥ पुण्य घणौ हुवै जेहन, ते किम मास्यौ जाइ रे । च० ॥पु०॥ ते सरूप दीठौ तिणे, अटकल कीधी तत्र रे । च० किणही चंडाल पापीय, ए कीधु अक्षत्र रे ॥ च० २पु० ॥
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