SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६.] [समयसुन्दर रासत्रय पुण्य करी परिघल सहू, उत्तम चाल आचार। पालै प्रीति कीधा पछी, नगर तगां नरनारि ॥२०॥ चि० ताजौ तेथि त्रिपोलियौ, सखर घणुं हाट सेरि । गढ मढ देउल दीपता, फटरी वाड़ी चौ फेरि ।।२१।। चि० वेरा कूआ नै वावड़ी, नदीय तलाव नीवांण । परघल पाणी सहु को पीये, मीठो अमृत समाण ॥२२॥ चि० नगरी चंपा सारखी, नहीं का बीजी किण देस। 'समयसुदर' कहै सांभलो, वर्णवी मैं लवलेश ॥२३॥ चि० [सर्वगाथा ३३ ] राज कर तिहां राजीयौ, सामंतक सूरवीर । राजा राज प्रजा सुखी, सबल हटक ने हीर ।। १ ।। वृद्धदत्त विवहारीयौ, वसै तिहां धनवंत । सोनईया छिन्नूं कोड़ि छ, पणि खुड़दौ न खरचंति ॥२॥ सोनईया सगला सदा, आघा ओरडै घालि । आठ पहुर आडौ रहै, परनै राखै पालि ।। ३ ।। देहरासर जिम देवता, पूजीजे परभाति । वृद्धदत्त विवहारीयो, धन पूछे दिन राति ।। ४ ।। कौतिकदेवी कामिनी, पिण नहीं पुत्र संतान । पुत्री एक त्रिलुत्तमा, रूप रंभ समान ।। ५॥ साधदत्त नामै सधर, भेला रहै बे भाय । दान पुण्य देवा तणी, बात विगत नहीं काय ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy