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चम्पक सेठ चौपई]
वृद्धदत्त विवहारीयौ, लोभी लाभ निमित्त । कण घी नौ संग्रह कर, वली वधै किम वित्त ।। ७ ।। करसण खेत्र करै घणा, वाहै पोठी ऊंट । लेता देतां लोभीयौ, ल्यै सहुना धन लूटि । ८ ॥ आरंभ लागै अति घणा, ते करै विणज व्यापार। परलोक थी ते पापीयौ, कांपै नहींय किवार ।। ६ ।। कणी न करावै केहनै, आकरो ऊतर देइ । दरसण को देखै नहीं, निरणां नाम न लेइ ।। १० ।। एक मांगतां पाव ये१, देखौ कृपण दातार । किमाड़ २ भोगल ३ उत्तर तुरत ४, गलहत्थौ मलबा रि५।११।
दस दृष्टांते दोहिलौ, मनुष्य तणौ अवतार । ... पापी पाप स्यु पिंड भरै, हा हा नांख्यौ हारि ।। १२ ।।
ढाल (२) चरण करण धर मुनिवर, ए जाति । सेठ सोनईयां नै पासै सूअं, इक दिन आधी रातो जी। एक आवी ने कहै काइ देवता, सेठ सांभलि इक वातो जी ॥१॥ ए धन नौ भोगता एक ऊपनौ, त्रिहि राति कह्यौ तेमोजी। वृद्धदत्त ते चिंतातुर थयौ, ए कुण छै कहै एमो जी ॥ २ ॥ ए. मैं दुख देखी नै मेलीयो, मत को ल्यै मुझ मालो जी। अजी सीम देखौ हुँ अपुत्रीयौ, हा कुण होस्य हवालौ जी ।। ए० बहु परि खबरि करी नै बांधीय, पाणी पहिली पालो जी। आराधुकुलदेवी आपणी, केनही कहै ते टालो जी ॥ ४॥ ए०
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