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चम्पक सेठ चौपई ]
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दरिआई मांडी दोसीए, बुलबुल चश्मा बहुमूल । ऊंचा खासा अधोतरी, पांभडी ने पटकूल ॥६॥ चि० नाणावटि निरखे धणा, नाणा नाना प्रकार। रालसेरा नईया नै रूपीया, छकड़ पीरोजी सार ॥१०॥ चि० जुड़ि करि बैठा रे जवहरी, कड़ मांहि कोथली बांधि । मणि माणक नै मोती तणा. साटौ मेली ल्यै सांध ॥११॥ चि० फाड़िए मांड्या रे फूटरा, गोहुँ चोखा नां गंज । मूग उड़द मउठ बाजरी, पगि पगि ज्वार ना पुज ॥१२॥ चि० घी ना गंज मांड्या घणा, कूड़ा भरि भरि कोड़ि । ओछो ये ते अभागीया, मुगध नै त्राकड़ि मोड़ि ॥१३॥ चि० गुल नै खांड ना गाडला, ऊतर आवी वखार । वेचे साटै रे वाणीया, वारू लाभ व्यापारि ॥१४॥ चि० मोची मांड्या रे मोजड़ा, जना अधमोजा जोड़ि। मुहगा पणि मोटीआर ल्य, मचकता चालै अंग मोड़ि ॥१॥चि० घांची मोची ना घर घणा, सूजी खाती सूआर । दांतारा पन्नीगरा, ताई छींपा तूनार ॥१६॥ चि० चौरासी इम चौहष्टा, मैं कह्या केईक नाम। जे जोईयै ते लाभैं जिहां, पिण दीधां थकां दाम ॥१७॥ चि० महल मन्दिर ऊंचा मालीया, वलि सातभूमी आवास । हीडोला खाट हींचती, ललनां लील विलास ॥१८॥ चि० व्यापारी व्यवहारीया, लील करै लख कोड़ि। बईयर पुत्रवंती बहू, खिण मात्र नहीं कोई खोड़ि ॥१६॥ चि०
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