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वल्कलचीरी चौपई]
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भाई ए भइ सि न देखि, वलकलचीरी नइ हुवेषि । दोहे नइ आणतउ दूध, पीता पिता अम्हे सूध ।। ७ ।। मिरगला ए रमणीक, नित चरइ निपटि निजीक । रमतउ हु इण सुं रंगि, बाल तणी परि बहु भंगि ॥ ८ ॥ भाई भणी बहु भांति, ओलखावतउ एकांति । पहुता बे बाप नइ पासि, भाई भलइ उलासि ॥६॥ प्रणमइ तुम्हारा पाय, अंगज प्रसनचंद आय । भणइ एम लहुड़उ भाइ, सहु तात नइ समझाइ ॥१०॥ सोमचंद साम्हउ जोइ, हीया मांहि हरषित होइ । वांसइ दीधउ वलि हाथ, संतोषीयउ बहु साथ ।।११।। . पभणइ प्रसनचंद राय, वलकलचीरी कहवाय । ते नमइ तात ना पाय, साम्हउ जोयउ सुख थाय ।।१२।। वलकलचीरी मिल्यउ वेगि, अलगउ टल्यउ उदेग। चुंबियउ माथउ चांपि, थिर पूठि हाथ सु थापि ।।१३।। . बेटा बिहु नइ संगि, रिषि पामीयउ मन रंगि । आंसू हरखना आंखि, झरतां गई सहु झांखि ॥१४॥ अंध पडल आंखि ना दूर, परा गया आणंद पूर । पेखिया पुत्र रतन्न, महा उलस्या तन मन्न ॥१५॥ सुख पूछीउ सोमचंद, पुत्र कहइ परमाणंद । तात जी तुम्ह पसाय, आणंद अंगि न माय ॥१६॥ . मई भणी नवमी ढाल, जनक नउ गयउ जंजाल । भली 'समयसुन्दर' भाख, 'सूत्र रिषिमंडल' द्यइ साख ॥१७॥
[सर्व गाथा २००]
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