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समयसुन्दर रासत्रय
पिता उछेरइ पुत्र नइ, जीवथी अधिकउ जाणि । पुत्र पछइ बूढापणइ, वेठि करइ निरवाणि ॥ ६ ॥ पणि हुं मोटउ पापीयउ, जनक नइ न हुअउ नेह । परलोक पामिसि तु तिहां, अफल कीयउ भव एह ॥ ७॥ किम ही हिव सेवा करू, मुझ तउ जनम प्रमाण । वलकलचीरी विरमतउ, चितवइ चतुर सुजाण ॥ ८ ॥
[सर्वगाथा १८३ ]
ढाल (९) राग-बंगालउ, इम सुणो दूत वचन्न कोपियउ राजा मन्न (ए मृगावतीनी दसमी ढाल)
वलकलचीरी इम वेगि, आवियउ चित उदवेग । वीनती सुणि मुझ वीर, हु हुवउ अति दिलगीर ॥ १ ॥ मुझ मन ऊमाह्यउ तेथि, श्री तात आश्रम जेथि। भणइ प्रसनचंद हे भाइ, सगपण सरीखं थाइ ॥ २ ॥ उछक घणु हु आप, भेटुं भली परि बाप । बांधव मिली करी बेउ, परिवार पूरउ लेउ ॥ ३॥ आश्रमइ आव्या जाम, उतख्या अश्व थी ताम । वलकलचीरी कहइ बात, सुणि प्रसनचंद्र सुजात ॥ ४ ॥ आश्रम दीठं अभिराम, ऊतस्या अश्व थी ताम । सर देखि साथी मेलि, करतउ हु हंस जु केलि ॥ ५ ।। ए देखि तरु अति चंग, रमतउ ऊपरि चडि रंग। फूटड़ा फल नइ फूल, एहना आणि अमूलि ॥ ६ ॥
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