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वल्कलची चौपई ]
राति दिवस रोता थकां भूली गई भूख ।
विरतांत |
आंखे रिषि आंधउ थयो, दोहिलउ पुत्र दूख ॥ ७ ॥ हा० रिषिनइ इम रहतां थकां वेश्या सांभल्यउ सघले तापसे, ते जिम सोमचंद्र सुख पामियऊ, पोतनपुर पुत्र |
थयउ विरतंत ॥ ८ ॥ हा
भाई घरि सुख भोगवइ, सुत वात ससूत्र ॥ ६ ॥ हा० सहु तापस सोमचंद नइ, वन फल यइ विसेषि । प्रति दिन प्रति चरजा करइ, दुखियां नइ देखि ||१०|| हा० आठमी ढाल एहवी, पड्यउ पुत्र नउ दुक्ख ।
कहइ समयसुंदर भ्रम करउ, सुतनउ हुयइ सुक्ख ||११|| हा०
दूहा
वरस बारइ इम वहि गया, आयउ भोग नउ अंत । वलकलचीरी वास घरि निशि सूतउ निश्चिंत ॥ १ ॥ आधी रात गई इसइ, चतुर चीतारी वात । अधम इहां हुं आवीयउ, तिहां मई मुक्यउ तात || २ || जात मात्र जननी मुंइ, मुई वली वा माइ । मुझ नइ बाप मोटर कियड, पिता घणउ दुख पाइ || ३ || कुण वनव्रीहि कुंण फल, कुण पाणी कुण पत्र । हा हा कुण आणतो हुरयइ, तात भणी कहउ तत्र ॥ ४ ॥ हुं अधम आव्यउ इहां, तात रहाउ मुझ तेथि । कहउ केही परि कीजीयइ, अधरम मइ कीयउ एथि ॥ ५ ॥
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