SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६] करम सुं जोरो को नहीं, जीव करम वसि जाणि । जीव बात जाणइ घणी, पणि करम करे ते प्रमाण || ७ || चोर तण कंचण प्रमुख, नयणे रथी निहाल | पोतनपुर माहे प्रगट, बेचइ हाट विचाल ।। ८ ।। धणी ते धन ओलख्यउ, काउ जइ नइ कोटवाल । बांध्य पाछे बांधियां, ते रथी नइ वलकलचीरी आवियर, उलख्यउ ए मुहत देई मुकावियङ, चितवी उपगार ततकाल ॥ ६ ॥ मुझ मित्त । चित्त ॥ १० ॥ [ समयसुन्दर रासत्रय [ सर्व गा० १६४ ] ढाल ( ८ ) - नगर सुदरण अति भलउ-ए चाल, सोमचंद एहवइ समइ, आश्रम रह्यउ एम । विरह विलाप करइ घणा, पुत्र ऊपरि प्रेम ॥ १ ॥ हाहा हुं हिव किम कम, सुत नी नही सार | गढा नइ मुकी गय, कहउ कुंण आधार ||२|| हा० | आंकणी । किन्नरी के विद्याधरी, नागरी के नारि । Jain Educationa International अथवा अपह ्यउ अपछरा, देखी दीदार ॥ ३ ॥ हा० भमतउ के भूल पड्यउ, महा अटवी मांहि । निरति तर काइ पडइ नही, कहउ जोऊं क्यांहि ॥ ४ ॥ हा० वनफल आणतउ वालहा, वन नी वलि व्रीहि । पग तूं माहरा चांपत, रूड़ा राति नइ दीहि ॥ ५ ॥ हा० साधरो सखर वछावत, पाणि पातउ आणि । बाप नइ बइठउ राखत, वारू बोलतउ वाणि ॥ ६ ॥ हा० For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy