SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वल्कलचीरी चौपई ] [ ४५ साच कही संतोष्यउ राजा, वेश्या वचन विलास | मु० महीपति अपणा माणस मुक्या, आवउ देखि आवास मु० ॥ १४ ॥ जइ देखी आवीनइ जंप, ए चित्राम आकार | मु० तुरत राजा तेहनइ तेडाव्यउ, आप हजूर अपार मु० ||१५|| आंखे देखी तुरत उलखीय, माहरउ ए मा जायउ । मु० सहोदर नइ साई दे मिलीय, परम आनंद सुख पायो || मु०१३ सातमी ढाल थई सुखदाई, भूपति नइ मिल्यउ भाई । मु० समयसुन्दर कहइ सहु मिलिइ सहुनइ, प्रगट हुवइ जउ पुण्याई १७ [ सर्व गाथा १५४ ] दूहा १० सखर हाथी सिणगार करि, बांधव नइ बइसारि । आण्य मंदिर आपणइ, नवल संघाति नारि ॥ १ ॥ उच्छब महुच्छव अतिघणा, कीधा राजा कोडि । बांधव बिहुंनी अति भली, जण जंपइ ए जोड़ि ॥ २ ॥ सह विवहार सीखाविया, जीमण तणी जुगन्ति । बोलण (चालण) वहु हला, अद्भुत हीया उगत्ति ॥ ३ ॥ बलि राजा परणावीयउ, कन्या बहु सुख काजि । भोग भली परि भोगवइ, सहु सामग्री साजि ॥ ४ ॥ तिरजंच ते पणि सीखव्या, सीखइ सहु विवहार । कहिं माणस तु किसुं, वलि जिहां विवेक विचार ||५|| भोग करम विण भोगव्या, कहउ कुण छूटइ कोइ । नंदिषेण निरख्यउ तुम्हे, आद्रकुमार ए जोइ ॥ ६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy