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वल्कलचीरी चौपई ]
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साच कही संतोष्यउ राजा, वेश्या वचन विलास | मु० महीपति अपणा माणस मुक्या, आवउ देखि आवास मु० ॥ १४ ॥ जइ देखी आवीनइ जंप, ए चित्राम आकार | मु० तुरत राजा तेहनइ तेडाव्यउ, आप हजूर अपार मु० ||१५|| आंखे देखी तुरत उलखीय, माहरउ ए मा जायउ । मु० सहोदर नइ साई दे मिलीय, परम आनंद सुख पायो || मु०१३ सातमी ढाल थई सुखदाई, भूपति नइ मिल्यउ भाई । मु० समयसुन्दर कहइ सहु मिलिइ सहुनइ, प्रगट हुवइ जउ पुण्याई १७ [ सर्व गाथा १५४ ]
दूहा १०
सखर हाथी सिणगार करि, बांधव नइ बइसारि । आण्य मंदिर आपणइ, नवल संघाति नारि ॥ १ ॥ उच्छब महुच्छव अतिघणा, कीधा राजा कोडि । बांधव बिहुंनी अति भली, जण जंपइ ए जोड़ि ॥ २ ॥ सह विवहार सीखाविया, जीमण तणी जुगन्ति । बोलण (चालण) वहु हला, अद्भुत हीया उगत्ति ॥ ३ ॥ बलि राजा परणावीयउ, कन्या बहु सुख काजि । भोग भली परि भोगवइ, सहु सामग्री साजि ॥ ४ ॥ तिरजंच ते पणि सीखव्या, सीखइ सहु विवहार । कहिं माणस तु किसुं, वलि जिहां विवेक विचार ||५|| भोग करम विण भोगव्या, कहउ कुण छूटइ कोइ । नंदिषेण निरख्यउ तुम्हे, आद्रकुमार ए जोइ ॥ ६ ॥
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