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: रहा है । इनमें कुछ तो प्राचीन जैन ग्रन्थों से आधारित है एवं कुछ लोक कथाएँ भी हैं। सिंहल सुत-प्रियमेलक तीर्थ की कथा सम्बन्धी यह काव्य सं० १६७२ मेड़ता में जेसलमेरी झाबक कचरा के मुलतान में किये गए आग्रह के अनुसार दान-धर्म के माहात्म्य पर कौतुक के लिए रचे जाने का कवि ने उल्लेख किया है। दूसरी कथा वल्कलचीरी की है, यह बौद्ध जातक एवं महाभारत में भी ऋषिशृङ्ग के नाम से प्राप्त है । सं० १६८९ में जेसलमेर में मुलतान निवासी जेसलमेरी साह कर्मचन्द्र के आग्रह से कवि ने इस कथा काव्य का निर्माण किया है । तीसरी चम्पक सेठ की कथा अनुकम्पा दान के माहात्म्य के सम्बन्ध में सं० १६६५ जालोर में शिष्य के आग्रह से रची गयी थी, यह चौपाई दो खण्डों में विभक्त है इसके बीच में सं० १६८७ के दुष्काल का आँखों देखा वर्णन भी कवि ने सम्मिलित कर दिया है । चौथी कथा धनदत्त सेठ की व्यवहार शुद्धि या नीति के प्रसङ्ग से सं० १६६६ आश्विन महीने में अहमदाबाद में रची गई है। पाँचवीं पुण्यसार . चरित्र चौ० पुण्य के माहात्म्य को बतलाने के लिए सं० १६७३ में शान्तिनाथ चरित्र से कविवर ने निर्माण की है। हमने इस संग्रह में पाँचों लघुकृतियों को प्राचीन व शुद्ध प्रतियों से . उद्धृत किया है। जो हमारे अभय जैन ग्रन्थालय में संरक्षित है और उनकी प्रशस्तियाँ भी प्रान्त में दे दी हैं। वल्कलचीरी चौ० की एक प्रति कविवर के स्वयं लिखित श्री पूरणचन्द्रजी
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