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( २ ) ही युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजी के करकमलों से दीक्षित हुए, आपके गुरुश्री का नाम सकलचन्द गणि था। सं० १६४१ से सं० १७०० तक आप अनवरत साहित्य साधना करते रहे। सं० १६४४ में सम्राट अकबर के काश्मीर प्रयाण के समय एकत्रित विस्तृत सभा में अपना अष्टलक्षो ग्रंथ विद्वज्जन समक्ष रखकर सबको आश्चर्यान्वित कर दिया था। इसी वर्ष फाल्गुन शुक्ला २ के दिन आपको वाचनाचार्य पद युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिजी ने दिया। सं० १७७१ में लवेरा में आचार्य श्रीजिनसिंह सूरिजी ने आपको उपाध्याय पद से अलंकृत किया था। राजस्थान, गुजरात, सिन्ध आदि में आपने विहार करके कई राजाओं एवं शेख मकनुम आदि को प्रतिबोध देकर पंचनदी के मत्स्य एवं गौहत्या का निषेध कराया था। वादी हर्षनन्दन आदि आपके ४२ विद्वान शिष्य थे, जिनकी शिष्य संतति अद्यावधि विद्यमान है। सं० १७०२ चैत्र शुक्ला १३ को अहमदाबाद में आपका स्वर्गवास हुआ। ___ कथा कहानी के प्रति मानव का सहज आकर्षण आदिकाल से ही रहा है और इसी बात को लक्ष में रखकर धर्म प्रचारकों ने भी कथा साहित्य को अपने उपदेश का माध्यम बनाया और जनता में धर्म-सदाचार और नीति का विशद प्रचार किया। जैन विद्वानों ने परम्परानुगत पौराणिक और लोककथाओं को प्रचुरता से अपनाया। प्रस्तुत ग्रंथ में कविवर समयसुन्दर के रचित पाँच राजस्थानी कथा काव्यों को प्रकाशित किया जा
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