________________
प्रस्तावना
भारतीय वाङ्मय की गौरव वृद्धि करने वाले महान् कवियों में राजस्थान के उच्च कोटि के सन्त और साहित्यकार महोपाध्याय समयसुन्दर का स्थान बड़ा ही महत्वपूर्ण है। संस्कृत में उनके मौलिक व वृत्तिपरक अनेक ग्रन्थ हैं उनमें 'अष्टलक्षी' तो विश्व साहित्य का अजोड़ ग्रंथ है, जिसमें "राजानो ददते सौख्यम्” इन आठ अक्षरों वाले वाक्य के दस लाख से अधिक अर्थ करके सम्राट अकबर व उसकी विद्वत् परिषद को चमत्कृत किया था। राजस्थानी एवं गुजराती भाषा में भी आपके रचित काव्यों की संख्या प्रचुर है। सीताराम चौपई जैसे जैन रामायण काव्य की ३७५० श्लोकों में आपने रचना की थी। नलदमयन्ती, मृगावती, सांब-प्रद्युम्न, थावञ्चा, ४ प्रत्येक बुद्ध आदि अनेक भाषा काव्यों का निर्माण किया था। आपकी ५६२ लघु रचनाओं का संग्रह हमने अपनी "समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि” में प्रकाशित किया है। उक्त ग्रन्थ में आपकी जीवनी व रचनाओं के सम्बन्ध में विस्तृत प्रकाश डाला गया है इसलिए यहाँ अधिक लिखना अनावश्यक है। संक्षेप में आपका जन्म मारवाड़ प्रदेश के साचौर नामक जैन तीर्थ स्थान में पोरवाड़ रूपसी की भार्या लीलादेवी की कुक्षि से सं० १६१५ के आसपास हुआ था। आप लघुवय में
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org