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नाहर के संग्रह में है, जिसका हमने अपने आदरणीय मित्र श्री विजयसिंहजी नाहर के सौजन्य से इसमें उपयोग किया है, एवं पुण्यसार चौ० की एक प्रति बीकानेर की सेठिया लाइब्रेरी में है, जिसके पाठान्तरों का उपयोग कर पुष्पिका यहाँ साभार उद्धृत की जाती है :
संवत् १७२९ प्रमिते कार्तिक मासे कृष्ण नवम्यां तिथौ महोपाध्यायजी श्री श्री ५ समयसुन्दरजी शिष्य वाचनाचार्य श्री मेघविजयजी तत् शिष्य वाचनाचार्य श्रीहर्षकुशलजी तत् शिष्य पण्डित प्रवर हर्षनिधान गणि तत् शिष्य हर्षसागर मुनि लिखितं । पं० नयणसी प्रतापसी पठनार्थम् ॥
इन रासों में सिंहलसुत चौ० आदि का अत्यधिक प्रचार रहा है और उसकी अनेक सचित्र प्रतियाँ भी उपलब्ध हैं । महाकवि समयसुन्दर की कृतियाँ अत्यन्त लोकप्रिय हैं, उनकी भाषा सरल और प्रासाद गुणयुक्त हैं। पाठकों से अनुरोध है कि वे मूल कृतियों का रसास्वादन करें । पाँचों रासों का कथासार भी आगे के पृष्ठों में प्रकाशित किया जा रहा है । पूर्व योजनानुसार इस संग्रह में कविवर के तीन रास ही देने अभीष्ट थे पर पीछे से दो रास और दे दिये गए। अतः पृष्ठ बढ़ जाने से लोक कथाओं के तुलनात्मक अध्ययन एवं कठिन शब्दकोश आदि देने का लोभ संवरण कर लेना पड़ा है, इसके. लिए आशा है पाठकगण क्षमा करेंगे ।
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—भँवरलाल नाहटा
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