SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वल्कलचीरी चौपई ] [ ४३ छट्ठी ढाल छोटी भणी, वलकलचीरी वेसि रे । समयसुंदर सच कहइ, कुण करम सुं जोर करेसि रे ||१०|| ० [ सर्वगाथा १३३ ] दूहा ते वलकलचीरी तिहां, रहइ वेश्या घरि रंग । तापस रूप वेश्या तिसइ सहु आवी नृप संगि || १ || करजोड़ी सघली कहइ, वलकलचीरी वात । संकेत सीम आव्यहुतउ, तितरइ आयउ तात ||२|| ताम अम्हे नासी गई, बीहती अबला बाल । मन जाण्युं मुनि बालि नइ, करइ भसम ततकाल ॥३॥ लोभायउ बड़ लाडुए, बील फले बहु वार | पाछउ रिषि जास्यइ नहीं, नरवर ते निरधार || ४ || [ सवगाथा १३७ ] ढाल (७) राग - कनड़उ, ठमकि ठमकि पाय पावरी वजाइ, गजगति, बांह लखावर रंग भीनी ग्वालणि आवड, एहनी । वात सुणी राजा विलखाण, भूप करइ दुख भारी । मुझ बांधव कोई मिलायइ || बांधव माहरउ बिहुंथी चूक, वात कीधी अविचारी ||१|| मुद्र मनवंछित मांग ते आपु, सघलइ वात सुणावर मु० || आंकणी तात की तेहनइ मई टाल्यऊ, इहां पणि तेह नआयउ । मु हा ! बांधव कम करतो होस्यइ, मुझ न मिल्यउ मा जायज ॥ २॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy