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________________ ४२ ] [ समयसुन्दर रासत्रय ढाल (६) जाति-परियारी कनकमाला इम चिंतवइ, ए ढाल A सखर सुगंध पाणी करी, सहु वेश्या करायउ स्नान रे । वारु वस्त्र पहिरावया, पीला खवराव्या पान रे ॥ १ ॥ वलकलचीरी वर, परणइ वेश्या नी पणि ते प्रीछ नहीं, कारिमी मिली केहs सीस वणाय सेहर, कानि दोय कुंडल लोल रे । ही हार पहिराय, दीपती दीसइ आँगुली गोल रे || ३|| व० बंध्या व बांहे बहरखा, मोती तणी कंठे माल रे । हाथे हथसांकली, भड तिलक कीयउ वलि भाल रे || ४ || व चोवा चंपेल लगावीया, फटडा पहिराया फूल रे । काfरम आरिम कीया, काइक कीधर अनुकूल रे || ५ || व० वाजित्र सखर वजाड़िया, गोरी वलि गाया गीत कहउ इण परि केहनउ, चूकइ नहीं चंचल चित्त रे || ६ || व० गीत गायइ ते इम गिणइ, रिषिजी रूड़उ भणइ वेद रे । आश्रम पोतन इस्याउ, भोलउ जाणइ नहिं भेद रे ॥७॥ ० एक कन्या आणी तिहाँ, रूपवंत घणु रंग रेलि रे । रिषि नइ परणावी, विलसंती मोहण वेलि रे || ८|| व० सुणहर मांहि सूयारिया, सुख सेज तलाई साज रे । रिषि राति विमासइ, ए अतिथि भगति थइ आज रे || रे I १ कामिनी २ नाथ Jain Educationa International पुत्रि रे । सूत्रि रे ||२|| १० For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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