________________
४०]
। समयसुन्दर रासत्रय
अधिक उछक थयउ मोदके रू० हारे० पोतन पहुंचु किवार । वन-फल थी विरतउ थयउ रू० हारे० अरस तिहां आहार ॥२४॥ रथी नइ आगलि जातां राह मई रू० हारे युद्ध लागउ अति जोर। प्रहार दीधउ रथी पिशुन नइ रू० हारे कोप करी नइ कठोर ॥२५॥ रथी नइ प्रहारइचोर रंजियउ रू० हारे० मंक्यउ निज अभिमान । माल लेज्यो इहां छइ माहरउ रू.० हारे० तुम्हनइ थय उ तुष्टमान २६ माल सकट मांहि थी लीयउ रू०, हारे० त्रिहुं जणे मिलीनइ तेह । चोर मुंयउ रथी चालियउ रू०, हारे साथ सहु सुसनेह ॥२७॥ पहुतउ रथी पोतनपुरइ रू०, हारे० रथी काउ सुणि रिषिराय । मित्र अम्हारउ तुमारग तणउ रू, हारे वांट उ अपणउ विहचाय २८
आश्रम पोतनइ ए तुं जा इहाँ रू०, हारे तुं जाणइ जो तेथि। दीधा' रे विना को देस्यइ नहीं रू०, हारे अन्न प्राणी वामएथि २८ इम कहि नइ रथी आपणइ ८.०, हारे गेह गयउ सुप्रसन्न । पांचमी ढाल पूरी थई रू०, हारे० समयसुंदर सुवचन्न ॥३०॥
सर्वगाथा १११ ]
दूहा १२ ते वलकलचीरी तिहां, मुनि पोतनपुर मांहि । नरनारी निरखइ घणा, रमता बालक राह ।। १॥ मोटा मन्दिर मालिया, अति ऊंचा आवास । हाथी घोड़ा हींसता, वलि दीधा सुविलास ।। २ ॥ .. १-दाम
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org