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वल्कलचीरी चौपई ]
[३६ इणि अवसरि एक रथी मिल्यउ रू० हारे०कीयउ अम्याद प्रकार। काउ तुम्हे केथि पधारस्यउ रू० हारे० कहइ ते पोतन
अधिकार ॥१॥ तुम्हे कहउतउ हूं साथि तुम्हारड़इ रू० हारे० आवं पोतन आश्रमि। कां तुं नावइ इम कहइ रथी रू० हारे० मोह्यउ वचन नरंमि।।१६।। तात तात कहइ तेहनी नारिनइ रूव्हारे० वहिली वांसइथकउ जाय। कामिनी कहइ रे निज कंतनइ रू० हारे० ए मुझ अचरिज
थाय ॥१७॥ रिषिपुत्र रलियांमणउ रू० हारे कहउए भोलउ केम। कंत कहइ सुणि कामिनी रू० हारे० एह मुगध रिषि एम ॥१८॥ इण अस्त्री का दीठी नहीं रू० हारे० सहु तापस संसार । भद्रक जीव भोलउ घणु रू० हारे० निरति नहीं नर नारि ॥१६।। वलकलचीरी पूछयउ वली रू० हारे० वहलीया वहता देखि । मृगलां मोटां नइ का मारउ तुम्हे रू० हारे० वाहउ केण
विसेषि ॥२०॥ हसि नइ कहइ रथी एहवं रू० हारे० सुणि भद्रक सुविचार । काम कीधां इण एहवा रू० हारे० अम्ह दोस ए न लिगार ॥२१॥ रिषिपुत्र नइ रथी लाडुआ रू० हारे० खावा नइ दीया खास । मोदक लागा मीठा घणु रू० हारे० उपनउ अधिक उलास ॥२२॥ रिषिपुत्र कहइ रथी एहवा रू० हारे० मोदक एहवइ मानि । तापस पणि दीधा हुँता रू० हारे० पोतन ना परधान ॥२३॥
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