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वल्कलचीरी चौपई ]
ढाल (५) राग - ढोलणी दहिया नइ महिया रे बांभाण वीरला रे रायजादी रे, एहनी ।
वेश्या नी टोली रे मिली विलसती रूप रूड़ी रे
हां रे वारू चतुर सउसठि कला जाण । कंचन वरण तनु कामिनी रू० हां रे० बोलति अमृत वाणि ||१|| रंगीली रे वंगीली रे हां रे वा० जोवन लहरे जाइ | आंकणी । गजगति चालइ गोरी मलपंती, रू० हांरे० विभ्रम लील विलास । लोचन अणियाला लोभी लागणा, रू० हांरे० पुरुष बंधण मृग पास ||२|| ललना चाली रे बील फल ले, रू० हांरे वेस तापस नउ वणाय । पुहती नइ तापस आश्रमि पाधरी, रू० हारे० दरसन अपणो दिखाय ||३|| जोगना पासइ रे जई ऊभी रही रे, रू० हांरे० अतिथि आया मुझ केइ । अभ्यादर करी ऊठीयउ रू० हांरे० दूर थी आदर देइ ||४|| पूछ उ ने पधार्या तुम्हे किहां थकी, रू० हांरे० कुंण कहउ तुम्हे
बात ।
अम्हे तउ पोतन आश्रमि रहुं, रू० हांरे० तापस तेहनी कहात |५| अम्हे नइ प्रांणा थारइ आवीया, रू० हांरे० करीसि भगति
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वलकलचीरी वनफल आणीया, रू० हांरे० बील दिया ।
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कुण आज ।
बहुसाज || ६ ||
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