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वल्कलचीरी चौपई ]
[३१ ढाल ( ३ ) राग-गउड़ी जाति जकड़ी नी, 'श्रो सहगुरु सुपसाउलइ' एह नउकार नी श्रेणिक देसना सांभली, प्रसन करइ प्रभु पासो जी, मारग मई मुनि वांदियउ, उग्र तप करइ उपवासो जी। उग्र तप करइ उपवास अहनिस, राजरिषि गरुअड़ निलउ, ते मरइ हिवड़ा तउ मुनीसर,' केथि जायइ कहउ भलउ । श्री वीर बोल्या सुणि हो श्रेणिक, तई वांद्या तेहवइ रली, जइ मरइ तउ सातमी जायइ, श्रेणिक देसणा सांभली ॥१॥ श्रेणिक मनि सांसउ पड्यउ, कहइ सामी ते केमो जी, ए उग्र तपसी एहवउ, उपजइ सातमी केमो जी। ऊपजइ सातमी केम प्रभुनइ, वलि, क्षणांतरि पूछियउ, मुनि मरइ हिवणां तो सर्वारथ-सिद्धि जातउ जाणिउ । भगवंत एह संदेह भाज्यउ, चारतियउ कोपइ चड्यउ, जब दुमुख कुवचन कह्या जातइ, श्रेणिक मनि सांसइ पड्यउ॥२॥ मन सु संग्राम मांडियउ, तीर नांख्या अति ताणो जी, खडक भांजी खंडो खंड कीयउ, रण भांज्या राय राणो जी। रण भांजिया राय राण वयरी, टोप वाहण कर वाहियउ, सिर लोच देखी राय चिंतवइ, व्रत लेइ मइ विराहियउ । हा हा हिवइ हुं केम छूटिसि, मई अन्याय मोटउ कियउ, अति घणउ पच्छाताप मंड्यउ, मन सुसंग्राम मंडियउ ॥३॥
२ किंहा
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