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________________ ३६ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि लौ तुम पद अरविन्द, मुझ मन मधुकर आनन्दई ॥०॥ न रहइ ते दूर लगार, शुक नन्द यथा सहकार || ३ आ०।। तुम्ह बिन हुं अवरन चाहुँ, अविचल निज भावई आराहु || आ निरालंबन ध्यानइ ध्याउँ, क्षीरनी पर मिलि जाउँ ||४ आ०|| वीरसेना नन्द विराजs, कीर्तिराज कुलइ निज छाजै || आ०|| सिंह लंछन दुख गज भांजर, कवि 'विनयचंद्र' नइ निवाजइ ॥५॥ || श्री अनन्तवीर्य जिनस्तवनम् ॥ राग - चन्द्राउलानी अनंतवीर्य जिन आठमउ रे, जीत्या कर्म कषाय । नाम ध्यान थी जेहनइ रे, अष्ट महा सिद्धि थाय ॥ अष्ट महासिद्धि जेहन नामइ, सहज सौभाग्य सुयशता पामइ जे इच्छित होइ सुख नइ कामइ, तेह लहर नित ठामो ठाम जी || १|| विहरमानजी रे । ईति उपद्रव सवि टलइ रे, जिहां विचरs जिनराज । भीति रीति पर नहीं रे, जाणि गंध गजराज ॥ जाँणि गंध गजराज सोहावइ, सुभग दान ना भर वरसावइ । कपट कोट दहवट्ट गमावइ, नित नयवाद घंटा रणकावइजी ||२ विह०|| अतिशय कमला हाथिणी रे, परिवरियउ निशदीश । सहजानन्द नन्दन वनइ रे, केलि करइ सुजगीश ॥ केलि करइ परमारथ जाणी, समता तटिनी सजल वखाणी । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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