SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विहरमान जिनवीसी आगम सुँडा दण्ड प्रमाणी, ___ परमत गज संगति नवि आणी जी ॥३ विह०॥ शुक्ल ध्यान उज्वल तनु रे, क्षायिक दर्शन ज्ञान । कुंभस्थल जसु दीपता रे, महिमा मेरु समान ॥ मेरु समान उत्तुंग ए देव, भविक कोडि जसु सारइ सेव । अचिर अभंग विचित्र कलायइ, तउ तस चरण सरोज मिलायइजी ॥४॥ विह०॥ मेघ नृपति कुल सुर पथई रे, भासुर भानु समान । मंगलावती माता तणउ रे, नन्दन गुणह निधान । गुण निधान गर्जित गज लंछन, वर्ण अनोपम अभिनव कंचन । भविक लोक नई नयणानन्दन, 'विनयचन्द्र' करइ नित नित वंदनजी ।।५ विह०। ॥ श्री सूरप्रभ जिन स्तवनम् ॥ ढाल-माहरी सही रे समाणी सूरप्रभु प्रभुता त पामी तोरा चरण नमुँ शिर नामी रे । मोरा अंतरजामी । देव अवर दीठा मंइ स्वामी, पिण ते क्रोधी कामी रे ॥१॥ मो०॥ तुझ मुद्रानइ जोड़इ नावइ, तउ सेवक दिल किम आवइ रे । मो० । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy