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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि हँस सोभ बग जाति न पावइ,
यद्यपि धवल सभावई रे ॥२॥ मो०॥ महिमा मोटिम तणी बड़ाई,
किम लहइ ते सुघड़ाइ रे । मो० । तरु भावइ तउ छइ इक ताई,
पिण अंब नींब अधिकाई रे ॥३॥ मो०।। पंखी जातइ एकज हुआ, पिण काग कोइल ते जूआ रे । मो०। देव अवर तुम्ह थी सहु नीचा, तुम्हे तउ गुणाधिक ऊँचा रे॥४॥ चन्द्र लंछन जिन नयणानन्दा, 'विनयचन्द्र' तुम्ह बन्दा रे॥५ मो०
॥ श्री विशाल जिनस्तवनम् ॥ ढाल-थारे महिला ऊपरि मेह झरोखे बीजली हो लाल झरोखइ बीजली श्री सुविशाल जिणंद, कृपा हिव कीजिए हो लाल कृपा० । बांह ग्रह्यां नइ छेह, कहो किम दीजियइ हो लाल कहो० ॥ सहज सलूणा साहिब, नेह निवाहियइ हो लाल नेह० । मुझ परि कूरम दृष्टि, तुम्हारी चाहियइ हो लाल तु० ॥१॥ चातक नइ मन मेह, बिना को नवि गमइ हो लाल बि० हंस सरोवर छोडि कि, छीलर नवि रमइ हो लाल कि छी० गंजा जल भील्या ते, द्रह जल नादरै हो लाल कि द्रह० मोह्या मालती फूल ते, आउल स्युं करइ हो लाल कि आ०॥२॥ भवि भवि तु मुझ स्वामी, सेवक हुँ ताहरौ हो लाल कि से० । जन्म कृतारथ आज, सफल दिन माहरौ हो लाल स०॥
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