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विहरमान जिनवीसी ॥ श्रीस्वयंप्रभ जिन स्तवनम् ॥
ढाल-लाछलदेवी मल्हार श्री स्वयंप्रभ, अतिशय रत्न निधान,
आज हो हेजइ रे हेजालू हियडै हरखियइजी ॥१॥ जिम चकवा दिनकार मोरां नइ जलधार, ___ आज हो नेहई रे गुण गेही नयणे निरखियइजी ॥२॥ जिहां विचरै प्रभु एह, तिहां होइ सुख अछेह, ____ आज हो पुण्ये रे परमेश्वर प्रेमई परखियइजी ॥३॥ दुख महोदधि पाज, भव जल तारण जहाज, ___आज हो रंगइ रे रलियालउ साहिब सेवियइ जी ॥४॥ मित्रभूति कुलचन्द, सुमंगला नौ नन्द, आज हो वंदइ रे विनयचन्द्र हित आणी हियइ जी ॥५॥
॥श्री ऋषभानन जिन स्तवनम् ।।
ढाल-आवौ आवौ जी मेहलै आवंतइ ऋषभानन जिनवर बंदी, हुँतौ थयौ रे अधिक आनन्दी । करि कर्म तणी गति मंदी, आतम सुं दुर्मति निंदी । आवौ आवौ साहिब सुखकन्दा, मुझ नयन चकोर नइ चन्द्रा । आवौ आवौ जी सेवक संभारै|आकणी।। संभारइ तेह सहेजा, स्युं संभारइ रे निहेजा ।।१ आ०॥ जोड्यौ जे तुम सुं नेह, जाणे पर्वत केरी रेह ।।आoll जमवारइ जायइ नहीं तेह, जिम आई धरांये मेह ॥२ आol
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