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________________ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि रंगाणी मुझ मतिए रंगइ, समकित नी सहिनाणी। . कुमति कमलिनी लवन कृपाणी, दुख तिल पीलण घाणी रे ॥३॥ शक्ति अपूर्व सहज ठहराणी, दुगति दूर हराणी । वाणी तेहिज वेमं वेधइ, कीरति तास गवाणी रे ॥४॥ प्रा०॥ निसढ़ नरेश्वर सुत शुभनाणी, माता भू नन्दा जाणी। विनयचन्द्र कवि ए कही वाणी, सुणतां अमी समाणी रे ।।प्रा०॥ ॥ श्रीसुजात जिन स्तवनम् ।। - ढाल-झांझरिया मुनिवरनी देशी श्री सुजात जिन पंचमा जी, पंचम गति दातार । पंचाश्रव गज भेदिवा जी, पंचानन अनुकार ॥ १ ॥ पंचम ज्ञान प्रपंच थी जी, धर्मादिक पणि द्रव्य । जेह त्रिकाल थकी कहै जी, सर्द है मनि तेह भव्य ॥२॥ पंच बाण नइ टालिवा जी, पंच मुखोपम जेह । विरहित पंच शरीर थी जी, अकल अलख गुण गेह ॥ ३॥ पंचाचार विचार हुँ जी, दाखइ जे व्यवहार । कल्पातीत पणइ रहइ जी, चरित अनेक प्रकार ॥४॥ देवसेन नृप नन्दनो जी, देवसेना जसु मात । विनयचन्द्र सोहइ भलौ जी, रवि लंछन विख्यात ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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