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चतुर्विंशतिका
२७ हंसा सर सांभरियाह रे, ते जन धरै मुगतिनी चाह रे । तिहां दीसइ रतन घणाहरे, जाणै नवल ममोला वाह रे ॥६॥ ए. जीवदया जिहां जाणियइ सखि नीली हरी भरपूर । बीज तणइ रूपइ भलौ सखि, प्रगट्यउ पुण्य अंकूर रे॥ दुख दोहग गया सहु दूर रे, इम वर्षा भावई भूरि रे । प्रभुना गुण प्रबल पडूर रे, कहै 'विनयचन्द्र' ससनूरि रे ।।७।। एक
॥ श्री महावीर जिनस्तवनम् ।।
___ ढाल-हाडानी मनमोहन महावीर रे त्रिसला रा जाया,
ताहरा गुण गाया, मनड़ा में ध्याया। तौही रे ताहरा खातर मैं नहीं रे, इवड़ी सी तकसीर रे त्रि० आज्ञाकारी रे हुँ सेवक सही रे ॥१॥ तुझसुं पूरवइ जेह रे,
त्रि० रंग लागौ रे चोल मजीठ ज्युरे। दिन दिन बाधइ तेह रे,
त्रि० भला रे व्यवहारी केरी पीठ ज्यु रे ॥२॥ निशिदिन मंइ कर जोड़ रे,
त्रि० ओलग कीधी स्वामी ताहरी रे । भव संकट थी छोड़ि रे,
त्रि० अरज मानौ रे एहिज माहरी रे ॥३॥ मंह आलंबी तुझ बाँहि रे,
त्रि कहौ रे निरासी तउ किम जाइयइ रे।।
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