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२६ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि एहवा म्हारे पास जी मन वसइ ॥ आंकणी ॥ वाणी ते हिज जिण सजी सखि, गुहिर घटा घन घोर । ज्योति मबूकै बीजली सखि, ए आडम्बर कोइ और रे । प्रमुदित भविजन मोर रे, पिण नहीं किहां कुमति चोर रे। कंदर्प तणो नहीं जोर रे, अन्धकार न किण ही कोर रे ।।२।ाए०।। महिर करइ सहु उपरइ सखि, लहिर पवन नी तेह । सुर असुरादिक आवतां सखि, पीली थइ दिशि जेह रे ।। जाणै कुटज कुसुम रज रेह रे, जिहां धर्मध्वजा गुण गेह रे । ते तउ इन्द्र धनुष वणेह रे, अभिनव कोई पावस एह रे॥
इम निरखै सहु नयणेह रे ॥३॥ए०।। चतुर पुरुष चातक तणी सखि, मिट गई तिरस तुरन्त । हरिहर रूप नक्षत्र नउ सखि, नाठउ तेज नितन्त रे ।। थयउ दुरित जवासक अन्तरे, मुनिवर मंडुक हरखंत रे । जिहाँ विजयमान भगवंत रे, विकशित त्रय भुवन वनंत रे||४||ए०॥ सुर मधुकर आलंबिया सखि, पदि कदिब अरविन्द । विरही जेह कुदर्शनी सखि, पावइ दुख नइ दन्द रे ।। युद्ध थी विरम्यां राजिन्द रे, हरियाथया सुगुण गिरिंद रे। विस्रति मति सरति अमंद रे, पल्लवित वेलि सुख कन्द रे ।।
फेड्या सगलाई फंद रे ॥५॥०॥ झिर मिर झिर मिर भर करइ सखि, नावइ किम ही थाह । प्रतिबोधित जन जेहवा सखि, ल्यइ बगि जिण मां लाह रे ।।
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