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चतुर्विशतिका जे तुम सेती प्रेम प्रयासइ जी विलगा,
ते किम टलस्यै अलगा हो । रा०। प्रीति लगास्यइ ते तउ जिम रंग अकीकी,
पड़े नहीं जे फीकी हो ॥४॥रा०॥ प्राणपियारा साहिब थे छउ जी म्हारै
मुझ नइ छइ तुम्ह सारै हो। रा०। इम जाणी नई प्रत्युपकार करता,
राखौ छौ सी चिन्ता हो ॥५॥रा०॥ स्युं कहुं कीरति राज तुम्हारी,
तुमे छउ बाल ब्रह्मचारी हो । रा०। राजुल नारी ते विरहागर क्यारी,
पोतानी कर तारी हो । रा०॥६॥ कहियउ जी म्हारौ अलवेसर अवधारउ,
हुँ छू दास तुम्हारौ हो । रा० । विनयचन्द्र प्रभु तुमे वरदाई,
मउज सवाई घउ काइ हो । राजा ॥ श्री पार्श्वनाथ स्तवनम् ॥
ढाल-इण रिति मोनइ पासजी सांभरइ जिनवर जलधर उलट्यौ सखि, वयणे वरसै मेह । जेहनई आगमनइ करी सखि, ऊपज्यौ प्रेम अछेह रे ।। नर नारी बाध्यउ नेह रे, ठाढी थइ सहुनी देह रे । पसर्यो चित भुइ मइ बेह रे, उपस्यउ खल कंदल खेह रे ।।१।।
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