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कुंद अनै मचकुंद विलासी,
विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि
कलि कीरति उज्ज्वल प्रतिभासी ॥ सा०l
पाडल प्रीति प्रतीत प्रबोधइ,
मरुक दमण सज्जन गुण सोधइ || सा०|| ४ || केवड़ानी परि तुं उपगारी,
गुणे करि धारी ॥ सा०l
द्राखते द्वेपनी रेखन दावे || सा०||५||
फूल अमूल
फल सहकार सकारइ फाबै,
वलि संतोष सदाफल सदली,
करुणा रूप सुकोमल कदली ||सा०||
नारंगी ते प्रभु निरागई,
जंभीरी युगतें करि जाई ॥ सा०||६||
फूल अनइ फल इत्यादिक छै,
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प्रभु ना गुण इण मांहि अधिक छइ || सा०॥
नहीं शिव पोइणि ते तुझ आगइ,
श्री अरनाथ विनयचंद मांगर ||सा०||७|| || श्री मल्लिजिन स्तवनम् ॥ ढाल - राजिमती राणी इण परि बोलइ
मल्लि जिनेसर तुं परमेसर,
तुझ नई सुरनर चर्चित केसर | | ० ||
तुझ सरिखा ते पुण्ये लहिय,
देखी देखी मन गह गहीयइ | | ० || १ ||
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