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चतुर्विंशतिका
प्रभुनी मुद्रा देखिन रे, मुझनइ थइ रे निरान्ति ।
हिव सेवा करवा तणी रे, मनड़ा मई छइ खान्ति ॥ ५ मो० ॥ नेह अकृत्रिम मई कियउ रे, कदे न विहड़इ तेह |
दिन २ अधिक उलटइ रे, जिम आषाढ़ी मेह || ६ मो० ॥ एक घड़ी पिण जेहनइ रे, बीसार्यो नवि जाय । 'विनयचन्द्र' कहइ प्रणमियइ रे, कुन्थु जिनेश्वर पाय ||७ मो० ॥ || श्री अरनाथ स्तवनम् ॥
तु गुण पंकति बाड़ी फूली,
ढाल - मोतीनी
साहिबा कांइ मज करौ नइ,
सुख सहस्रदल
कमल
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मुझ मन भमर राउ तिहां भूली ।
मउज करउ कांई अंग सुहाता,
सुणि सुणि नै विगताली बातां ||१|| सा०॥ तुझ पद कज केतकी मई पाई, आवै
खुशबूह सहाई ॥ सा० ॥
तसु मालती महकै,
मोहन भाव
१६
साहिबा कांइ मज करउ || आंकणी ॥
आनी संगति करि गहकर ||२||सा०|| विकास्यौ,
चित्त उदार ते चंपक जाणौ,
समतारस मकरंद वास्यउ || सा० ॥
दिल गंभीर गुलाब वखाणौ ॥ सा०||३||
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