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चतुर्विशतिका वाल्हा ताहरउ हो नहीं कोई दोष,
सोस किसउ कीजइ हिवइ ।। मो० ॥ वाल्हा वलि म्यउ कीजइ हो रोष,
आतम कृत कर्म अनुभवइ । मो० ॥६॥ वाल्हा पिण तुं हो सकज सदीव,
धर्मनाथ जिन पनरमउ ।। मो० ॥ वाल्हा एहिज बात मइ जीव,
विनयचन्द्र' ना दुख गमउ । मो० ॥७॥
॥ श्री शान्तिनाथ स्तवनम् ॥
ढाल-बिछियानी हारे लाल शान्ति जिनेश्वर सांभलउ,
____माहरइ मन आवइ ख्याल रे लाल। हुँ तुझ चरणे आवियउ, तुं न करइ केम निहाल रे लाल ।।१।। माहरउ मन तुझ मई वसि रह्यउ ।। किणी ।। जिम गोपी मन गोविंद रे लाल, गौरी मन शंकर वसइ । वलि जेम कुमुदिनी चंद रे लाल ॥ २ मा०॥ बात कहीजइ जेहनइ, जे मन नउ हुइ थिर थोभ रे लाल । जिण तिण आगलि भाषता, वाल्हेसर न चढइ शोभ रे लाल ।।३।। तिण कारणि मईमाहरी, सहु बात कही तजि लाज रे लाल । तु मुखथी बोलइ नहीं,
किम सरिस्यइ मन काज रे लाल ॥४ मा०॥
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