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चतुर्विंशतिका
॥ श्रीश्रेयांस जिन स्तवनम् ॥
ढाल — राजमती तें माहरो मनड़ौ मोहियौ हो लाल, एहनी जिनजी हो मानि वचन मुझ ऊधरउ हो लाल, महिर करी श्रेयांस वालेसर |
खेल चतुर्गति मां कियौ हो लाल,
वादी जिण परि वांस | वा० ||१||
पिण तुझ्नइ नवि सांभय हो लाल,
मंइ तर किण ही वार ॥ वा० ॥
हिव अनुक्रमितुझनर मिल्यउ हो लाल,
इहां नहीं झूठ लिगार | वा० ॥२॥
देखि स्वरूप संसार नउ हो लाल,
भय आवे नितमेव ॥ वा० ॥
पिण जाणुं छं ताहरी हो लाल,
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आडी आस्यै सेव || वा० ||३||
सेव करइ ते स्वारथइ हो लाल,
तेहनी ताहरइ चित्त ॥ वा० ॥
मोह हिया थी मेल्हिनर हो लाल,
तुं बैठो तिति ॥ ० ॥४॥
कर जोड़ी तुझ आगले हो लाल,
कहियइ वारंवार ॥ वा० ॥
तर ही तु न करइ मया हो लाल,
स्यानउ प्राण आधार || वा० ||५|
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