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________________ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि तुम्हथी कुण मुझनइ वाल्हूं, . हुं तउ तुमहिज ऊपरि माल्हुं हो ॥ जि० ।। साम्हउ जोवउ बहु खांतइ, कहइ विनयचन्द इण भांतइ हो ।जि०॥७॥ ॥ श्रीशीतलजिनस्तवन ॥ ढाल-वेगवती ते बांभणी, एहनी अरज सफल करि माहरी, शीतलनाथ सनेही रे। थोड़ा माँ समजै घj, साचा साजन तेही रे ।। १ ।। अ०।। तुझ बिन मननी वातड़ी, केहनइ आगल कहियइ रे । पासइ रहि सीखावियइ, तउ प्रभु सोह न लहीयइ रे ॥२॥०॥ तिण मेलउ दे मुझ भणी, जिम मन मां सुख थावइ रे। जउ चिन्ता चित्त राखीयइ, दिवस दुहेलउ जायइ रे ॥३॥१०॥ तैं मन लीधउ हेरिनइ, जिम भावै तिम कीजइ रे । कहतां लागइ कारिमउ, अनुमानइ जाणीजइ रे ॥ ४ ॥ अ०॥ जनम लगइ हिव माहरइ, तुं छइ अन्तरजामी रे। निज सेवक जाणी करी, खमिजे वाल्हा खामी रे ॥ ५॥१०॥ बीजउ सहु दूरइ रहउ, जउ फरवू तुझ छाया रे ।। तउ अगणित सुख ऊपजइ, उल्लसइ माहरी काया रे ॥ ६ ॥ अ० ॥ प्राण ही नवि पहुंचियइ, तेहनइ तुरत नमीजै रे। विनयचंद्र' कहै तेहनउ, तउ कांइक मन भीजै रे॥७॥ प्र० ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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