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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि मीठा अमृत नी परइ रे, ऋषभ जिनेश्वर संग। प्र०। 'विनयचन्द्र' पामी करी रे, राखउ रस भरि रंग । प्र० ॥७॥
॥श्री अजित जिन स्तवनम् ॥
ढाल-हमीरा नी साहिब एहवउ सेवियइ, सुगुण सरूप सतेज सजनजी। मिलतां ही मन उल्लसै, दीठां बाधइ हेज सजनजी ।।१।। सा०॥ तेतउ आज किहाँ थकी, जिण माहें हुवै स्वाद । स० । स्वाद बिहूणा छोड़ियइ, राखेवां मरजाद सजनजी ॥२।। सा०॥ समय अछइ इण रीत नों, तउ पिण बखत प्रमाण । स० । मुझनइ प्रभु तेहवउ मिल्यौ, सहज सुरंग सुजाण । स० ॥३॥सा०॥ ज्यां सँ मन पहिली हुँतउ, ते तउ देव कुदेव । स०। . कंचन नइ वलि कामिणी, ते जीप्या नितमेव । स० ॥४॥साall ए निर्जित इण बात मां, रिद्धि तजी भरपूर सजनजी। दर्प हतउ कंदर्प नउ, ते पणि टल्यउ दूर सजनजी ॥५॥ सा०॥ मुगति बधू रस रागियउ, ज्योतिर्मय वसुधार सजनजी। यश महकइ गहकइ गुणे, अजित विजित रिपुवार ।स०||सा०॥ 'विनयचन्द्र' प्रभु आगलें, कर्म अरी करी नीम सजनजी। बेगि वल्या गर्भई गल्या, जिम पोइण गल हीम स० ॥७॥ सा० ।।
॥श्री संभव जिन स्तवनम् ॥
___ ढाल-धणरा मारूजी रे लो स्वस्तिश्री गर्जित भयवर्जित त्रिभुवनतर्जित
सकल जीव हितकामी रे लो । म्हारां वालेसर जी रे लो।।
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