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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि
चतुर्विंशतिका
॥ श्रीऋषभ जिन स्तवनम् ॥
ढाल-महिंदी रंग लागौ आज जनम सुकियारथउ रे, भेट्या श्रीजिनराथ । . प्रभु सुं मन लागो, खिण इक दूरि न थाय ॥ प्रा सुगुण सहेजा माणसां रे, जोरइ मिलियइ जाय । प्र० ॥११॥ नयणे नयण मिलायनइ रे, जिन मुख रहीयइ जोय । प्र०।। . तउ ही तृप्ति न पामियइ रे, मनसा बिवणी होय । प्र० ॥२॥ मानसरोवर हंसलउ रे, जेम करइ झकझोल । प्र०। तिम साहिब सैं मन मिल्यउ रे, करइ सदा कल्लोल । प्र०॥३॥ हीयड़ा माहि जे वसइ रे, वाल्हा लागइ जेह । प्र०। . जउ बीजा रूपई रूड़ा रे, न गमइ तां तूं नेह । प्र० ॥४॥ रसल्यै गुण मकरंद नउ रे, चतुर भमर सजि खेद । प्र० जे जण घण सरिखा हुवइ रे, स्यु जाणइ तस वेध । प्र० ॥५॥ एहवउ मॅइ निश्चय कियउ रे, पलक न मेलूं पास । प्र०। आखर सेवा मां रह्यां रे, फलस्यइ मन नी आस । प्र० ॥६॥
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