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________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि - मरणा।। एसरी गइपारती ॥ स॥ मुजमनमम वेलि किसी चुने दर संघ कर सलवर सनी रे लिए सणादे अधूरी असाल लाइ | सपा का बूढा ऊ ए बाल कि तिते फल तेव्ह फूटस०|| स्वाद अतिविस्साल॥३०॥ ह पारधीदियइ॥सहमदावादम कार कि । सास की एांगनी ॥ ॥ वत्पाङत्यकार॥४०॥ संवत सतर वादन सादर्षा रिति नतमास कि। दसमी दिन३ दिएकामा समनच्या सास॥श्रीतिधर्मसू [रिपाटवी||स||श्री जिनचंद्रसूरी सति। खरतरगहना राखीया। सतसराज गीस६ सणापाठदर्ष विधानसी |स ज्ञान तिलकखए साथ कि।दिनयवं इकदम करी ॥ संग इग्यार सिक्षाय ॥७॥सण इतिश्रीएकादशांगानास्वाध्यायः ॥ संव कमन गरे । उपाध्याय श्रीहर्ष विधान ही शिष्ट ष्पणी। हरमाला पवना ।। श्रीरस्तमः। श्रुतं। त्य६६वर्षे मिती देशास दि१४ दिने। श्री दि पंपजन तिलक लिषत साधीकीर्तिमाला लव्त्रः कल्याणमस्तः ॥ श्रेया सिप्रवर्ततां ॥ कविवर के गुरु उ० ज्ञानतिलक लिखित कवि विनयचन्द्रकृति संग्रह प्रति का अन्तिम पत्र བཙ
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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