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[ ४१ । ग्रहण कर दिया सारे नगर में आनन्द उत्सव मनाये गये। सुन्दरी गणिका अनंगसेना भी पातिव्रत नियम लेकर कुमार की चौथी स्त्री हो गई। राजा ने मालिन को बुलाकर धमकाया तो उसने समुद्रदत्त व्यवहारी द्वारा पाँचसौ मुद्रा प्राप्त कर लोभवश कुमार को मारने के लिए पुष्प-करंडिका में साँप रखने का दुष्कृत्य स्वीकार कर लिया। राजा ने समुद्रदत्त व मालिन को मृत्युदण्ड दिया पर उदारचेता कुमार ने अपना भाग्य-दोष बताते हुए उन्हें क्षमा करवा दिया। राजा ने समुद्रदत्त का सर्वस्व लूटकर अन्त में देश निकाला दे दिया। - राजा नरवर्मा ने उत्तमकुमार को राजपाट सौंप कर सेठ महेश्वरदत्त के साथ सद्गुरु के चरणों में जाकर संयम-मार्ग स्वीकार कर लिया और शुद्ध चारित्र पालन कर कर्मों का क्षय किया। अन्त में केवलज्ञान पाकर मोक्षगामी हुए। जब राक्षसेन्द्र भ्रमरकेतु ने नैमित्तिक से अपने वैरी का पता पूछा तो उसने कहा, वह तुम्हारी पुत्री को पंच रत्नों सहित व्याह कर ले गया और इस समय मोटपल्ली में है। जब भ्रमरकेतु ने दुर्गम वक्र कूप में पहुंचना असम्भव वतलाया तो उसने कहा कि जब वह अकेला था तब भी तुम उसका पराभव न कर सके तो अब तो वह प्रबल और जामाता भी हो गया। भ्रमरकेतु वैरभाव त्याग कर उत्तमकुमार से मिला और अपनी पुत्री तथा जामाता
को आशीर्वाद देते हुए उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। .. एक दिन जब उत्तमकुमार राजसभा में बैठा था तो
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