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[ ३६ ] तो उसने कहा-आप अपना वचन पूर्ण नहीं करते तो मैं चला जाऊँगा और जंगल में फल-फूल वृत्ति से अपना उदरपूर्ण करूँगा। मैंने यह जान लिया कि मनुष्य मायावी होते हैं और स्वार्थ सिद्ध होने पर तत्क्षण बदल जाते हैं। यह कहकर जब शुक उड़ने लगा तो राजा ने रोक कर कहा-धैर्यधारण करो, राज्य अवश्य दूंगा, पर यह तो बतलाओ उत्तमकुमार कहाँ है ? जीवित है कि नहीं ? मेरी यह शंका दूर करो ! शुक ने कहा-इतनी बात बताने पर भी जब कुछ नहीं मिला तो आगे बालुका को पीलने से क्या तेल निकलेगा ? जब राजा ने राज्य व कन्या देने की स्वीकृति दी तो शुक आगे का वृतान्त बतलाने लगा- 'उसो समय अनंगसेना नामक सुन्दर गणिका वहां पहुंची
और उसे विषापहार मणि प्रक्षालित जल द्वारा निर्विष कर दिया और अपने घर ले जाकर चौथी मंजिल के महल में रखा। राजन् ! मैंने दाक्षिण्यवश सारा वृत्तान्त बतला कर मूर्खता की अब यदि आप अपना वचन पूरा नहीं करते तो मैं जाता हूं, आपका कल्याण हो ! राजा ने कहा-अर्द्ध चिकित्सा करके वैद्य नहीं जा सकता अतः अनंगसेना के घर में कुमार को शोध कर लूँ फिर तुम्हें राज दूंगा।
.. राजा ने अपने कर्मचारियों को अनंगसेना के घर भेजा। वेश्या से राज-जामाता का अनुसन्धान पूछा तो वह चिन्तित और नीची नजर कर मौन हो गई। जब उत्तमकुमार वेश्या के
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