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[ ३८ ] • वाराणसी के राजा मकरध्वज का पुत्र उत्तमकुमार भाग्य परीक्षा के लिए घर से निकलकर देशाटन करता हुआ भरुअछ आया और मुग्धद्वीप देखने के लिए जहाज में बैठकर समुद्र के बोच पहुँचा। वहाँ जलकान्त पर्वत स्थित भ्रमरकेतु राक्षस कारित कुएं में साहस पूर्वक उतर कर लंकापति की पुत्री मदालसा से उसने पाणिग्रहण किया। फिर अपनी स्त्री के साथ कूप-मार्ग से बाहर आकर समुद्रदत्त के वाहन में आरूढ़ हुआ। मार्ग में जल शेष हो जाने पर पंचरत्न के प्रभाव से सबको अशन पान से सन्तुष्ट किया। कुमार की संपदा और स्त्री को देखकर पापी सेठ ने उसे समुद्र में गिरा दिया। उसे गिरते ही मकर ने निगल लिया जिसे धींवर ने जाल में पकड़कर उदर विदीर्ण कर कुमार को निकाला। वह एक दिन त्रिलोचना का प्रासाद देखने आया जिसका नव्य निर्माण हो रहा था। उसका राजकुमारी के साथ पाणिग्रहण हुआ और सुखपूर्वक रहने लगा और एक दिन वह जिन पूजा के हेतु घर से निकलकर जिनालय आया पूजनान्तर पुष्प करण्डिका में बंशनलिका को खोल कर देखा तो उसमें रखे हुए जहरी साँप ने कुमार के हाथ में डंक लगा दिया जिससे वह मूर्छित हो धराशायी हो गया। हे राजन् ! मैंने मदालसा और त्रिलोचना के पति का सारा वृत्तान्त बतला दिया अब कृपाकर अपनी सत्य प्रतिज्ञानुसार मेरी आशा पूर्ण करें तथा सेठ से भी सहस्रकला कन्या दिलावें। ऐसा कहकर शुक के मौन धारण करने पर राजा ने उसे आगे बोलने को कहा
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