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[ ३६ ] लेजाकर किस विपत्ति में डाला होगा। व्यर्थ ही परस्त्री पर मोह उत्पन्न होने का पश्चाताप करता हुआ मध्यान्हकाल मैं जिनपूजा के हेतु कुसुम, चन्दन आदि लेकर जिनालय में गया। बहुत विलम्ब हो जाने पर भी जब कुमार वापस नहीं लौटा तो त्रिलोचना ने चिन्तित होकर दासी को भेजा। खबर मिली कि उसे न तो किसी ने जाते देखा और न आते ही। त्रिलोचना पति-वियोग से दुखी होकर विलाप करने लगी। सर्वत्र खोज कराई गई पर कुमार का कोई पता नहीं लगा। __ इसी नगरी में महेश्वरदत्त नामक वणिक रहता था जिसके ५६ कोटि स्वर्ण-मुद्राएं निधान में, ५६ कोटि उधार में, एवं ५६ कोटि मुद्राएं व्यापार में थी। उसके ५०० जहाज, ५०० गोकुल, ५०० हाथी, ५०० घोड़े, ५०० पालकी, ५०० कोठे, ५०० सुभट व पांच लाख सेवक थे। उसके कोई उत्तराधिकारी पुत्र नहीं था, सहस्रकला नामक एक मात्र गुणवती कन्या थी जिसके लिए योग्य वर प्राप्त होने पर पाणिग्रहण करवा के स्वयं दीक्षित होने की सेठ महेश्वरदत्त की चिर-कामना थी। उसने अपनी ६४ कला निधान पुत्री को तरुण वय प्राप्त हो जाने पर भी जब योग्य वर न मिला तो एक नैमित्तिक से अपने भावी जामाता के विषय में प्रश्न किया। नैमित्तिक ने कहा-जो व्यक्ति राज सभा में त्रिलोचना के पति और मदालसा का पूरा वृत्तान्त कहेगा, वही तुम्हारी पुत्री का वर होगा और आज से एक महीने बाद वह मिलेगा। वही अखण्ड प्रतापी सारे राज्य
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