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________________ साक्षी देती है कि वह अवश्य तुम्हारा पति ही होगा। यदि आज्ञा दो तो जाकर प्रतीति कर आऊं ? वह मदालसा की आज्ञा लेकर त्रिलोचना के घर गई और त्रिलोचना के भाग्य की प्रशंसा करते हुए उसके प्रियतम को देखने की इच्छा प्रकट की। त्रिलोचना ने कहा मेरे प्राणाधार महल में सोये हुए हैं, जाकर देख आओ। वृद्धा ने उत्तमकुमार को पलंग पर सोये हुए देखा और मदालसा से आकर कहा-मुझे तो तुम्हारे पति जैसा ही लगता है। यह सुनकर मदालसा के हृदय में प्रेम जगा और उससे मिलने को उत्सुक हुई। फिर दूसरे ही क्षण बिना प्रतीति किये परपुरुष के प्रति आकृष्ट होनेवाले पापी मन को धिक्कारा । इधर उत्तमकुमार ने वृद्धा को देख कर जाते हुए देखा तो त्रिलोचना से पूछा कि अभी महल में कौन आई थी, मुझे पता नहीं लगा। त्रिलोचना ने कहा-मेरे से भी सौन्दर्य व गुणों में उत्कृष्ट एक परदेशिन यहाँ आई है जिसे मैंने बहिन करके माना है वह एकान्त में रहकर धर्म ध्यान करती है परोपकारिणी तो वह अद्वितीय है उसके पास दिखता तो कुछ नहीं पर न जाने उसके पास क्या सिद्धि है दान पुण्य में अपार धनराशि व्यय कर रही है। पति के वियोग में उसने शरीर एकदम सुखाकर कृश कर लिया है। यह वृद्धा जो आपको देख गई उसी की सखी है। कुमार ने जब यह वृतान्त सुना तो उसे अपनी प्रियतमा मदालसा का ख्याल आया और उससे मिलने को उत्सुक हुआ। फिर दूसरे ही क्षण सोचा--उसे न जाने पापी समुद्रदत्त ने कहाँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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