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[ ३४ ] गया। कुमारी के विष व्याप्त शरीर को राजमहल में लाकर विषापहार के हेतु गारुड़िक लोगों को बुलाया गया। उनके लाख उपाय करने पर भी जब कुमारी निर्विष नहीं हुई तो राजा ने राजकुमारी का विष उतारने वाले को अर्द्धराज्य व कुमारी से पाणिग्रहण कर देने की उद्घोषणा करवा दी। उत्तमकुमार ने पटह स्पर्श किया और उसने मन्त्र विद्या के बल से राजकुमारी त्रिलोचना को सचेत कर दिया। राजा ने अपने वचनानुसार शुभ मूहुर्त में उत्तमकुमार के साथ त्रिलोचना का पाणिग्रहण करा दिया। हस्तमिलाप छुड़ाने के समय राजा ने उसे अर्द्ध राज्य दे दिया। उत्तमकुमार अपनी प्रिया के साथ नवनिर्मित प्रासाद में रहने लगा । यहाँ दूसरा अधिकार समाप्त हो जाता है। - तीसरे अधिकार के प्रारम्भ में कवि भगवान महावीर को नमस्कार कर श्रोताओं को आगे का सम्बन्ध सुनने का निर्देश करता है। मदालसा ने दासी से कहा- प्रियतम का अबतक कोई पता नहीं लगा अतः वे समुद्र में डूब गए मालूम होते हैं । मैं अब किस आशा से जीवित रहूं ? मैंने इतने दिन आंबिल तपश्चर्या की, जिनालय एवं स्वर्ण, रत्नमय प्रतिमाएं बनवाई, त्रिकाल पूजा की। साधु व स्वधर्मियों को दान पुण्य आदि धर्माराधन करते हुए प्रतीक्षा की पर अब तो पांचों रत्न त्रिलोचना बहिन को सम्भला कर संयम-मार्ग स्वीकार कर लेना ही मेरे लिये श्रेयस्कर है । वृद्धा ने कहा-जिस परदेशी ने त्रिलोचना से व्याह किया है, सारे नगर में उसकी प्रशंसा सुनाई देती है, मेरी आत्मा
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